क्या नवंबर में अक्टूबर सरप्राइज और ईरान कनेक्शन से अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीत सकते हैं ट्रंप...या कमला बनेंगी बिग बॉस

नई दिल्ली: 1980 में नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन चैलेंजर रोनाल्ड रीगन को डर था कि ईरान में बंधक बनाए गए अमेरिकी बंधकों को रिहा करने के लिए अंतिम समय में किए गए समझौते से मौजूदा जिमी कार्टर को दोबारा चुनाव जीतने के लिए पर्या

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नई दिल्ली: 1980 में नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन चैलेंजर रोनाल्ड रीगन को डर था कि ईरान में बंधक बनाए गए अमेरिकी बंधकों को रिहा करने के लिए अंतिम समय में किए गए समझौते से मौजूदा जिमी कार्टर को दोबारा चुनाव जीतने के लिए पर्याप्त वोट मिल सकते हैं। चुनाव से पहले अक्टूबर में इतनी ज्यादा प्रेस कवरेज की गई। इसमें रीगन ने जोर-जोर से कहा था कि ईरानी सरकार और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर चाहकर भी अमेरिकी बंधकों को चुनाव से पहले रिहा नहीं करा पाएंगे। इसका असर यह हुआ कि कार्टर चुनाव हार गए और रीगन अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए। यहीं से अक्टूबर सरप्राइज का जन्म हुआ। अमेरिकी जल्द ही अपना अगला राष्ट्रपति चुनने की तैयारी में हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि क्या अक्टूबर सरप्राइज रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप को जितवाएगी या डेमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस को।

क्या ट्रंप ने भी दिया था अक्टूबर सरप्राइज

हाल ही में 27 अक्टूबर को मैडिसन स्क्वायर गार्डन में ट्रंप की रैली में हास्य अभिनेता टोनी हिंचक्लिफ ने प्यूर्टोरिको को कचरे का तैरता द्वीप बता डाला, जिसे कुछ टिप्पणीकारों ने अक्टूबर सरप्राइज करार दिया है। दरअसल, एक्सपर्ट का कहना है कि कॉमेडियन की इस टिप्पणी से प्यूर्टोरिको के मतदाताओं पर प्रभाव पड़ सकता है। पेंसिल्वेनिया में में 5 लाख प्यूर्टोरिकन्स हैं।

क्या है अक्टूबर सरप्राइज, इसका कैसे पड़ता है असर

अमेरिका की राजनीति में अक्टूबर सरप्राइज ऐसी घटना है जो नवंबर में हो रहे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे प्रभावित कर सकती है। यह सरप्राइज जानबूझकर योजना के तहत या ऑटोमेटिक भी हो सकती है। अमेरिका के राष्ट्रीय चुनावों के साथ ही कई राज्य और स्थानीय चुनावों की तारीख नवंबर की शुरुआत में होती है। ऐसे में अक्टूबर में होने वाली घटनाओं में संभावित मतदाताओं के निर्णयों को प्रभावित करने की अधिक संभावना होती है। इसे कमतर करने के लिए कम समय मिलता है। ऐसे में आखिरी मिनट की खबरें या तो चुनाव की दिशा बदल सकती हैं या किसी दूसरे पक्ष को फायदा दिला सकती हैं।
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जब अक्टूबर सरप्राइज के चलते जीत गए जॉनसन

अब जरा अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के इतिहास की ओर चलते हैं, जहां से ये शब्द चलता चला आ रहा है। 7 अक्टूबर, 1964 को राष्ट्रपति चुनाव से ठीक एक महीने पहले लिंडसे बी जॉनसन के शीर्ष सहयोगियों में से एक वाल्टर जेनकिंस को वॉशिंगटन में एक अन्य व्यक्ति के साथ अव्यवस्थित आचरण के लिए गिरफ्तार किया गया था। इस मामले को उछालने वाले टोलेडो ब्लेड के बारे में कुछ आपत्तिजनक बातें पता चलीं। इसके कुछ समय बाद ही रूस में निकिता खुश्चेव चुनाव हार गए। नतीजा यह रहा कि डेमोक्रेट प्रत्याशी जॉनसन ने बड़ी जीत हासिल की।
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जॉनसन से दूरी बनाना हम्फ्रे को पड़ा भारी, निक्सन जीते

1968 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ह्यूबर्ट हम्फ्रे चुनावों में तेजी से बढ़ रहे थे। उन्होंने वियतनाम जंग को लेकर सार्वजनिक रूप से जॉनसन प्रशासन से दूरी बनाना शुरू कर दिया और बमबारी रोकने का आह्वान किया। सीनेटर यूजीन मैक्कार्थी ने अक्टूबर के अंत में हम्फ्रे का समर्थन किया। मगर, रिचर्ड निक्सन ने करीबी मुकाबले में चुनाव जीत लिया।
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किसने दिया था अक्टूबर सरप्राइज का मंत्र

अक्टूबर सरप्राइज शब्द विलियम केसी ने उस वक्त गढ़ा था जब उन्होंने रोनाल्ड रीगन के 1980 के राष्ट्रपति अभियान के अभियान प्रबंधक के रूप में काम किया था। विलियम केसी ने प्रेस के सामने अक्टूबर सरप्राइज का आइडिया दिया था। 17 जुलाई, 1980 की सुबह उन्होंने रिपब्लिकन सम्मेलन में प्रेस को बताया कि वह चिंतित थे कि कार्टर सत्ता का लाभ उठाकर ऐसी घटना को अंजाम देंगे जिससे उन्हें राजनीतिक रूप से लाभ होगा। केसी ने उल्लेख किया कि कार्टर ने विस्कॉन्सिन प्राइमरी के दौरान ऐसा किया था। केसी ने प्रेस को बताया कि वह कार्टर की राजनीतिक गतिविधियों पर नजर रखने के लिए एक खुफिया ऑपरेशन चला रहे हैं।
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रोनाल्ड रीगन भी अक्टूबर सरप्राइज के चलते जीते चुनाव

मॉडर्न खोजी पत्रकारिता के फाउंडर माने जाने वाले जैक एंडरसन ने 1980 के अंत में संभावित अक्टूबर सरप्राइज के बारे में वॉशिंगटन पोस्ट में एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि जिमी कार्टर का प्रशासन उन्हें फिर से राष्ट्रपति चुने जाने में मदद करने के लिए अमेरिकी बंधकों को बचाएगा। इसके लिए कार्टर ईरान में एक बड़े सैन्य अभियान की तैयारी कर रहे थे। यही बात रीगन के पक्ष में गई।

दूसरे देशों में सबसे ज्यादा अमेरिकी दखल रहा

हांगकांग यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ पॉलिटिक्स एंड पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में असिस्टेंट प्रोफेसर डोव एच लेविन की 2020 में एक किताब आई, जिसने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया। यह किताब थी-Meddling in the Ballot Box: The Causes and Effects of Partisan Electoral Interventions। यह किताब 1946 से लेकर वर्ष 2000 तक के पूरी दुनिया में चुनावों में विदेशी दखल पर हुए एक अध्ययन पर आधारित है। इसके मुताबिक, यह कहा गया है कि 54 साल के दौरान अमेरिका ने कई देशों में चुनाव के दौरान सबसे ज्यादा दखल दिया है। नीचे दिए ग्राफिक से समझते हैं कि किन देशों के चुनाव में किसने सबसे ज्यादा दखल दिया था।

सरकार बदलवाने में चीन और रूस झूठ का लेते हैं सहारा

एक जर्मन पॉलिटिकल साइंटिस्ट और अलायंस 90 द ग्रींस पार्टी की सदस्य अन्ना लुहरमैन की 2019 में एक स्टडी आई। यह स्टडी वैराइटीज ऑफ डेमोक्रेसी इंस्टीट्यूट, स्वीडन में प्रकाशित हुई। इसमें कहा गया है कि 2019 में हर देश ने कहा है कि मुख्य राजनीतिक मुद्दों को लेकर सबसे ज्यादा झूठ बोले गए। सबसे ज्यादा झूठ फैलाने में चीन और रूस माहिर हैं। चीन ने ताइवान तो रूस ने लातविया के चुनावों में यही किया। बहरीन, कतर और हंगरी, त्रिनिदाद एंड टोबैगो, स्विट्जरलैंड और उरुग्वे जैसे देशों में झूठे अफवाहों के आधार पर चुनावों को प्रभावित किया गया।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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